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उत्तराखंड विश्नोई सभा सेवक दल ट्रस्ट
बिश्नोई समाज, जिसे 15वीं शताब्दी में गुरु जम्भेश्वर (जाम्भोजी) ने स्थापित किया था, राजस्थान में केंद्रित एक धार्मिक और पर्यावरण-सचेत समुदाय है. यह समुदाय 29 नियमों का पालन करता है, जिनमें से अधिकांश पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक नैतिकता से संबंधित हैं. बिश्नोई समाज को प्रकृति, विशेषकर वन्यजीवों और पेड़ों की रक्षा के लिए जाना जाता है.
बिश्नोई समाज का इतिहास:
स्थापना:
गुरु जम्भेश्वर ने 1485 ई. में राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में बिश्नोई धर्म की स्थापना की.
29 नियम:
बिश्नोई समाज के लोग 29 नियमों का पालन करते हैं, जिन्हें गुरु जम्भेश्वर ने निर्धारित किया था.
पर्यावरण संरक्षण:
इन नियमों में पर्यावरण संरक्षण, विशेष रूप से पेड़ों और वन्यजीवों की रक्षा पर जोर दिया गया है.
सामुदायिक मान्यता:
बिश्नोई समाज को हिंदू धर्म के एक उप-सम्प्रदाय के रूप में मान्यता प्राप्त है.
विस्तार:
बिश्नोई समाज राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी फैला हुआ है.
बिश्नोई समाज की विशेषताएं:
पर्यावरण के प्रति समर्पण:
बिश्नोई समाज प्रकृति को बहुत महत्व देता है और उसे भगवान के समान पूजता है.
वन्यजीवों की रक्षा:
वे वन्यजीवों, विशेषकर काले हिरणों की रक्षा के लिए जाने जाते हैं.
पेड़ों की रक्षा:
बिश्नोई समाज पेड़ों को भी बहुत महत्व देता है और उन्हें काटने का विरोध करता है.
सामाजिक नैतिकता:
बिश्नोई समाज सामाजिक नैतिकता और व्यक्तिगत स्वच्छता पर भी ध्यान देता है.
समुदाय की एकजुटता:
बिश्नोई समाज के लोग एक-दूसरे के साथ एकजुट होकर रहते हैं और जरूरतमंदों की मदद करते हैं.
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
बिश्नोई शब्द "बीस" (20) और "नौ" (9) से मिलकर बना है, जो 29 नियमों का प्रतीक है.
बिश्नोई समाज के लोग प्रकृति के लिए अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहते हैं.
बिश्नोई समाज में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई आंदोलन हुए हैं, जिनमें से कुछ में लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है